घूंघट-बुर्का हमारी संस्कृति नहीं, हर घर से हो पर्दा उठाने की शुरुआत

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 21वीं सदी में घूंघट और बुर्केे को पिछड़ने का कारण मानते हुए महिलाओं से इस प्रथा से बाहर आने का आह्वान कर हर समाज में नई चर्चा छेड़ दी है। सीएम ने अपने निवास पर शबद कीर्तन कार्यक्रम में बुधवार को कहा था- हम तो कहते हैं जब से मोबाइल हाथ में आया है तब से दुनिया हमारी मुट्ठी में हैं और महिला आज भी घूंघट में कैद रहे तो यह कैसा न्याय? दैनिक भास्कर ने इस पर हर वर्ग की राय जानी।

 क्लासरूम में भी हिजाब में रहती हैं कॉलेज गर्ल्स


मैं आरयू की टीचर हूं। आज भी लड़कियां हिजाब पहनकर क्लास में आती है। मैं धर्म पर विचार नहीं रखती लेकिन कोई सामाजिक बंदिश है तो उससे नई पीढ़ी को बाहर निकलना चाहिए। महिला को वस्तु समझने की सोच समाज से निकालनी ही पड़ेगी। घूंघट और बुर्का उठाने के लिए साक्षरता बढ़ाने और गांवों में काम करना जरूरी है। सोच बदले बिना और महिला पुरुष दोनों को समझाए बिना घूंघट नहीं हट पाएगा।
डाॅ. रूबी जैन, एसोसिएट प्रोफेसर


महात्मा गांधी ने अपने घर से शुरुआत कर घर और आश्रम हर जगह हटाया घूंघट, अब हमारी बारी 


महात्मा गांधी की 150 जयंती पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हर घर यह संकल्प ले कि खुद के घर से घूंघट-बुर्का हटाने की शुरुआत करेंगे। वैसे भी घूंघट और बुर्का हमारी संस्कृति नहीं है। महिला सशक्तिकरण का काम जो काम गांधीजी ने किया वह आज भी मिसाल है। उन्होंने घर में कस्तूरबा से लेकर आश्रम में हर प्रकार के पर्दे को समाप्त किया था। वे अपने परिवार के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने घर की पर्दा प्रथा को दूर किया और महिलाओं को बराबर का अधिकार अपने घर में दिया था।
एस एस बिस्सा, पूर्व आईएएस, काॅर्डिनेटर, गांधी शांति एवं अहिंसा सेल


सती प्रथा मिटा सकते हैं तो घूंघट ही हटा देंगे


मुख्यमंत्री ने बिल्कुल सही कहा। 21वां सदी में घूंघट और बुर्का हटना ही चाहिए। सती प्रथा, बाल विवाह और घरेलू हिंसा की तरह पर्दा प्रथा और घूंघट के खिलाफ अभियान चलना चाहिए। समाज महिलाओं को खुलापन दे। आजादी दे।
प्रो. लाडकुमारी जैन, पूर्व अध्यक्ष राज्य महिला आयोग


साथ कार्य करने से ही मिलेगा बराबरी का दर्जा


घूंघट और बुर्का तो अब समाज से विलुप्त होना ही चाहिए। लेकिन केवल कह देने से नहीं होगा। पितृ सत्तात्मक समाज में यह बदलाव आसान नहीं। हमने पूरे राजस्थान में देखा है। सैकड़ों पंचायतों में महिलाएं आज भी सरपंच होकर घूंघट में कैद हैं। पुरुषों की समझ बदलनी पड़ेगी, तब यह बदलाव आएगा। हर काम घर से लेकर बाहर का हो तब पुरुष के साथ महिला को बराबरी के हक के साथ मौका मिलना चाहिए।
शाहिना, उपाध्यक्ष टाबर संस्था